काला नाला हीन जल, सो फिर पानी होय
जो पानी मोती भया, सो फिर नीर न होय || 41 ||
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कामी तारे क्रोधी तारे, लोभी की गति होय
सलिल भक्त संसार में, तरत न देखा कोय || 42 ||
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तन मन लज्जा ना करे, काम बाण उर शाल
एक काम सब बस किये, सुर नर मुनि बेहाल || 43 ||
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घर जाये घर ऊभरे, घर राखे घर जाय
एक अचम्भा देखिया, मुआ काल तो खाय || 44 ||
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कबीरा यह गति अटपटी चटपटी लखी ना जाय
जो मन की खटपट मिटे अधर भया ठहराय || 45 ||
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सेवक सेवा में रहे, सेवक कहिये सोय
कहे कबीरा बावला सेवक कभी ना होय || 46 ||
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सतगुरु मिला जो जानिये, ज्ञान उजाला होय
भरम का भंडा तोडकर रहे निराला होय || 47 ||
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बंधे को बंधे मिले, छूटे कौन उपाय
जो मिले निरबन्ध को, पल में ले छुडाय || 48 ||
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कबीर लहरे समुद्र की मोती बिखरे आय
बगुला परख न जान ही, हंसा चुन चुन खाय || 49 ||
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कबीरा दर्शन साधु के, करण न कीजे हानि
जो उद्यम से लक्ष्मी की, आलस मान स हानि || 50 ||
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साधु शब्द समुद्र हैं जा में रतन भराय
मन्द भाग मुट्ठी भर कंकड हाथ लगाय || 51 ||
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साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाही
धन का भूखा जो फिरे सो तो साधु नाही || 52 ||
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भॆष देख ना पूछिये, पूछ लीजिये ज्ञान
बिना कसौटी होत नाही, कंचन की पहचान || 53 ||
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कस्तुरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन माही
ज्यों घट घट राम है, दुनियां देखे नाही || 54 ||
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कोयला भि हो उजला, जरी पाडी जो सेक
मूर्ख होय न उजला, जो काला का खेत || 55 ||
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कबीरा तेरी झोंपडी, गल कटियां के पास
जैसी करणी वैसी भरणी, तू क्यू भया उदास || 56 ||
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करता रहा सो क्यों रहा, अब करी क्यों पछताय
बोये पेड बबूल का तो आम कहां से पाय || 57 ||
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कबीरा गर्व ना कीजिये, कबहूं ना हंसिये कोय
अज ये नाव समुद्र में ना जाने क्या होय || 58 ||
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माटी कहे कुम्हार को तू क्या रौंदे मोय
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंदूंगी तोय || 59 ||
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आये है सो जायेंगे, राजा रंक फकीरएक सिंहासन चढी चले, दूजा बंधे जंजीर || 60 ||
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