Tuesday, April 5, 2011

कबीर का दोहे 3

काला नाला हीन जल, सो फिर पानी होय
जो पानी मोती भया, सो फिर नीर होय || 41 ||

___________________________________

कामी तारे क्रोधी तारे, लोभी की गति होय
सलिल भक्त संसार में, तरत देखा कोय || 42 ||

___________________________________

तन मन लज्जा ना करे, काम बाण उर शाल
एक काम सब बस किये, सुर नर मुनि बेहाल || 43 ||
.

घर जाये घर ऊभरे, घर राखे घर जाय
एक अचम्भा देखिया, मुआ काल तो खाय || 44 ||

___________________________________

कबीरा यह गति अटपटी चटपटी लखी ना जाय
जो मन की खटपट मिटे अधर भया ठहराय || 45 ||

___________________________________

सेवक सेवा में रहे, सेवक कहिये सोय
कहे कबीरा बावला सेवक कभी ना होय || 46 ||
.

सतगुरु मिला जो जानिये, ज्ञान उजाला होय
भरम का भंडा तोडकर रहे निराला होय || 47 ||
.



बंधे को बंधे मिले, छूटे कौन उपाय
जो मिले निरबन्ध को, पल में ले छुडाय || 48 ||

___________________________________

कबीर लहरे समुद्र की मोती बिखरे आय
बगुला परख जान ही, हंसा चुन चुन खाय || 49 ||

___________________________________

कबीरा दर्शन साधु के, करण कीजे हानि
जो उद्यम से लक्ष्मी की, आलस मान हानि || 50 ||
.

साधु शब्द समुद्र हैं जा में रतन भराय
मन्द भाग मुट्ठी भर कंकड हाथ लगाय || 51 ||

___________________________________

साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाही
धन का भूखा जो फिरे सो तो साधु नाही || 52 ||
.

___________________________________

भॆष देख ना पूछिये, पूछ लीजिये ज्ञान
बिना कसौटी होत नाही, कंचन की पहचान || 53 ||
.

___________________________________

कस्तुरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन माही
ज्यों घट घट राम है, दुनियां देखे नाही || 54 ||
.

___________________________________

कोयला भि हो उजला, जरी पाडी जो सेक
मूर्ख होय उजला, जो काला का खेत || 55 ||
.

___________________________________

कबीरा तेरी झोंपडी, गल कटियां के पास
जैसी करणी वैसी भरणी, तू क्यू भया उदास || 56 ||
.

करता रहा सो क्यों रहा, अब करी क्यों पछताय
बोये पेड बबूल का तो आम कहां से पाय || 57 ||

___________________________________

कबीरा गर्व ना कीजिये, कबहूं ना हंसिये कोय
अज ये नाव समुद्र में ना जाने क्या होय || 58 ||

___________________________________

माटी कहे कुम्हार को तू क्या रौंदे मोय
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंदूंगी तोय || 59 ||
.

___________________________________

आये है सो जायेंगे, राजा रंक फकीर
एक सिंहासन चढी चले, दूजा बंधे जंजीर || 60 ||

No comments:

Post a Comment