Tuesday, April 5, 2011

कबीर का दोहे 2

नारी पुरुष सब ही सुनो, यह सतगुरु की साख
विष फल फल फले अनेक है, मत देखो कोई साख|| 21 ||

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परनारी की याचना, जो लहसुन की खान
कोने बैठे खाइये, प्रगट होये निदान || 22 ||
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पढा सुना सीखा सभी, मिटी ना संशय शूल
कहे कबीर कासो कहु, ये सब दुःख का मूल || 23 ||
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पहले शब्द पिचानिये, पीछे कीजे मोल
पारखी परखे रतन को, शब्द का मोल ना तोल || 24 ||
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मान उन्मना ना तोलिये, शब्द के मोल ना तोल
मूर्ख लोग ना जानसी, आपा खोया बोल || 25 ||
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श्रम ही से सब कुछ बने, बिन श्रम मिले ना काही
सीधी उंगली घी जमो, कबसु निकसे नाही || 26 ||
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तिनका कबहु निंदिये पाव तले जो होय
कबहुं आंखों पडे, पीड घनेरी होय || 27 ||
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ऊंचा कुल के कारणे, भूल रहा संसार
तब कुल की क्या लाज है जब तन लागो छाड || 28 ||

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माया माया सब कहे, माया लखे कोय
जो मन से ना उतरे, माया कहिये सोय || 29 ||

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भूखे को कुछ दीजिये, यथा शक्ति जो होय
ता ऊपर शीतल बचन लाखों अत्मा सोये || 30 ||
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चिडिया चोंच भर ले गई, नदी को घट्यो ना नीर
दान दिये धन ना घटे, कह गये दास कबीर || 31 ||

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जो कोई निंदे साधु को, संकट आवे सोय
नरक जाये जन्मे मरे, मुक्ति कबहुं ना होय || 32 ||
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विषय वासना उलझकर जन्म गंवाया बात
अब पछतावा क्या करे, निज करणी कर याद || 33 ||
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धर्म किये धन ना घटे, नदी घटे ना नीर
अपनी आंखन देख लो, कह गये दास कबीर || 34 ||
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अति हठ मत मर बांवरे, हठ से बात ना होय
ज्यों ज्यों भीजे कामरी, त्यों त्यों भारी होय|| 35 ||

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ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति बिश्वास
गुरु सेवा ते पाइये, सतगुरु चरण निवास || 36 ||
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गुरु कुम्भार सीस कुम्भ है, घडी घडी काडे खोट
अन्दर हाथ सवर दे, बाहर मारे चोट || 37 ||

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कबीरा मन पंछी भया, भावे तहा जाय
जो जैसी संगत करे, सो तैसा फल पाय || 38 ||
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शील क्षमा जब उपजे, अलख दृष्टि जब होय
बीन शील पहुंचे नहीं लाख कथे जो कोय || 39 ||
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कबीरा ज्ञान बिचार बिन, हरी ढूंढन को जाय
तन में त्रिलोकी बसे, अब तक परखा नाय || 40 ||

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