Tuesday, April 5, 2011

कबीर का दोहे 1

माया तजे तो क्या हुआ, मान तजा ना जाय
मान बडे मुनिवर गये, मान सबन को खाय || 1 ||
.





_

कदे अभिमान ना कीजिये, कहा कबीर समझाइ
जा सिर अहा जो संचरे, पडे चौरासी जाय || 2 ||
.





सुख के संगी स्वार्थी, दुःख में रहते दूर
कहे कबीर परमार्थी, दुःख सुख सदा हुजूर || 3 ||
.





सबसे लघुता ही भली, लघुता से सब होय
जस द्वितीया का चन्द्रमा, शशि लहाय सब कोय || 4 ||
.





क्षमा बडन को उचित है, छोटन को उत्पात
का विष्नु का घटी गया, जो भृगु मारी लात || 5 ||
.





जैसा भोजन कीजिये,वैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय || 6 ||
.





___________________________________

कबीरा ते नर अंध है, जो गुरु कहते और
हरी रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर || 7 ||
.





___________________________________

कबीरा धीरक के धरे, हाथी मन भर खाये
टुक टुक बेकार में, स्वान घर घर जाये || 8 ||
.










___________________________________

चन्दन जैसा साधु है, सर्प ही सब संसार
ताके अंग लगा रहे, मन में नहीं विकार || 10 ||
.



वृक्ष बोला पात से, सुन पत्ते मेरी बात,
इस घर की यह रीत है, इक आवत इक जात || 11 ||
.


___________________________________

माइ मेरी जब जायेगी, तब आयेगी और
जब ये निश्चल होयेगा, तब पावेगा ठौर || 12 ||
.

___________________________________

धन रहे ना जोवन रहे, रहे गांव ना धाम
कहे कबीरा जस रहे, कर दे किसी का काम || 13 ||
.

___________________________________

झूंठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मौज
जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गौर || 14 ||
.

___________________________________

मान बडाई ना करे, बडे ना बोले बोल
हीरा मुख से ना कहे, लाख हमारा मोल || 15 ||
.

___________________________________

ज्ञानी से कहिये काह, कहत कबीर लजाये
अंधे आगे नाचते, कला अकारथ जाय || 16 ||
.

___________________________________

शीतल शब्द उचारिये, अहम मानिये नाही
तेरा प्रीतम तुझ में है, दुश्मन भी तुझ माही || 17 ||



___________________________________

खोद खाद धरती सहे, काट कूट वनराय
कुटिल वचन साधु सहे, और से सहा जाय || 18 ||
.

___________________________________

मन के बहु सतरंग है, छिन छिन बदले सोय
एक रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय || 19 ||

___________________________________

मीठा सब कोई खात है, विष है लागे धाय
नीम ना कोई पीवसी, सब रोग मिट जाय || 20 ||

No comments:

Post a Comment