माया तजे तो क्या हुआ, मान तजा ना जाय | |
_ कदे अभिमान ना कीजिये, कहा कबीर समझाइ | |
सुख के संगी स्वार्थी, दुःख में रहते दूर | |
सबसे लघुता ही भली, लघुता से सब होय | |
क्षमा बडन को उचित है, छोटन को उत्पात | |
जैसा भोजन कीजिये,वैसा ही मन होय | |
___________________________________ कबीरा ते नर अंध है, जो गुरु कहते और | |
___________________________________ कबीरा धीरक के धरे, हाथी मन भर खाये | |
___________________________________ चन्दन जैसा साधु है, सर्प ही सब संसार | |
वृक्ष बोला पात से, सुन पत्ते मेरी बात,
इस घर की यह रीत है, इक आवत इक जात || 11 ||
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माइ मेरी जब जायेगी, तब आयेगी और
जब ये निश्चल होयेगा, तब पावेगा ठौर || 12 ||
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धन रहे ना जोवन रहे, रहे गांव ना धाम
कहे कबीरा जस रहे, कर दे किसी का काम || 13 ||
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झूंठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मौज
जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गौर || 14 ||
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मान बडाई ना करे, बडे ना बोले बोल
हीरा मुख से ना कहे, लाख हमारा मोल || 15 ||
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ज्ञानी से कहिये काह, कहत कबीर लजाये
अंधे आगे नाचते, कला अकारथ जाय || 16 ||
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शीतल शब्द उचारिये, अहम मानिये नाही
तेरा प्रीतम तुझ में है, दुश्मन भी तुझ माही || 17 ||
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खोद खाद धरती सहे, काट कूट वनराय
कुटिल वचन साधु सहे, और से सहा न जाय || 18 ||
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मन के बहु सतरंग है, छिन छिन बदले सोय
एक रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय || 19 ||
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मीठा सब कोई खात है, विष है लागे धायनीम ना कोई पीवसी, सब रोग मिट जाय || 20 ||
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